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दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है और इसकी कहानी क्या है ?

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दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है और इसकी कहानी क्या है ?
दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है और इसकी कहानी क्या है ?

नमस्ते दोस्तों, आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। दीपावली का असली में महत्व क्या है? और इसके पीछे की कहानी क्या है? यह विस्तारित रूप में जानेंगे। दीपावली का त्यौहार हमारे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। दीपावली का मतलब है जलते हुए दीयो की माला। दीपावली में अलग-अलग राज्यों में बहुत ही जोश और जल्लोष के साथ दीपावली उत्सव मनाया जाता है। दीपावली में हर जगह दिए और फटाके की चमक दमक दिखाई देती है।

दिवाली साल में एक बार आती है। अपने साथ बहुत सारी ख़ुशियाँ और रोनक लेकर आती है। दीपावली मनाने के पीछे कई सारी प्राचीन कहानियां हैं। लेकिन दीपावली मनाने के पीछे एक मुख्य कारण है। जो है बुराई पर अच्छाई की विजय यानी की कभी भी बुरी चीज ज्यादा देर तक टिक नहीं सकती। अच्छाई उस पर विजय प्राप्त कर लेती है।

कभी भी ज्यादा देर तक अंधेरा नहीं रहता है। एक ना एक दिन सवेरा तो जरूर होता है। उसी प्रकार अज्ञान पर ज्ञान की जीत, और अंधेरे पर उजाले की जीत और बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।

तो आइए जानते हैं, की दीपावली की असली कहानी क्या है? और क्यों मनाया जाता है दीपावली उत्सव?

लोग दीपावली का त्यौहार कैसे मनाते हैं ?

यह साल में एक बार आने वाला त्यौहार है। परंतु इस त्यौहार का इंतजार हर किसी को रहता है। दीवाली 5 दिनों का त्यौहार है। इसमें 5 दिनों तक लोग इस उत्सव का आनंद लेते हैं। इसकी शुरुआत होती है, धनतेरस से उसके बाद में छोटी दीवाली, दीवाली फिर गोवर्धन पूजा और भाई दूज से खत्म होती है।

दीवाली में हर जगह पर चहल-पहल रंग रंगोली और चारों और रोशनी दिखाई देती है। दीवाली से पहले लोग अपने घरों की साफ सफाई करके उन्हें कलर करते हैं। और नए कपड़े खरीदते हैं। स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं, मिठाइयां बनाते हैं, अपने काम की जगह पर साफ सफाई करते हैं। और उसकी पूजा करते हैं।

हर त्यौहार की तरह दीवाली की भी एक कहानी है। जोकि आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएँगे की भारत वंश में दिवाली क्यों मनाई जाती है। और इसके पीछे की कहानी क्या है?

दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?

दिवाली क्यों मनाई जाती है?  क्योंकि हमारे प्राचीन ग्रंथों में और महाकाव्यों में इसका विस्तारित स्वरूप लिखा गया है। दिवाली मनाने के पीछे कई सारे कथाओं की मान्यता है। दीपावली हिंदुओं का एक बहुत बड़ा त्यौहार है, जो भारत-वर्ष में लोग बहुत धूमधाम से यह त्यौहार हर साल में एक बार मनाते हैं। दीपावली में ही राम जी, सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ 12 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या वापस आए थे। राम जी माता सीता और लक्ष्मण जी के  स्वागत करने के लिए सारी अयोध्या वासियों ने दशहरे के दिन से अपने घरों को रंग रंगोली से और पूरे अयोध्या और अपने घरों को दीपो से सजा दिया था।

आज भी लोग यह दिन को प्राचीन काल की तरह ही मनाते हैं। जैसे कि अपने घरों को रंग रंगोली करते हैं। और पूरे घर को दिए से सजाते हैं। पूरा घर दीयों की जगमगाता है। पहले की तरह ही मनाते हैं अपने घरों को सजाते हैं और दियो से रोशन करते हैं यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। जैसे हर कोई जानता है कि दिवाली 5 दिन का त्यौहार है। और इन पांचों दिनों का अपना अपना एक महत्व है। और उसके पीछे  प्राचीन काल की कई सारी कहानियां जुड़ी हुई है।

तो आज हम इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएँगे कि दीपावली के इन 5 दिनों का महत्व क्या है? और उसके पीछे की कहानी क्या है?

दिवाली के 5 दिनों की विस्तारित रूप में जानकारी और उसके पीछे की प्राचीन कहानियां :

दिवाली की शुरुआत पहले दिन यानी कि धनतेरस से होती है। और उसके बाद भाई दूज पर खत्म होती है। तो इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएँगे की के इन 5 दिनों का महत्व क्या है? और उनके पीछे की प्राचीन कहानियां क्या है? इनकी मान्यता क्या है ?

धनतेरस :

दीपावली की शुरुआत धनतेरस से होती है। यानी कि 5 दिनों में से यह पहला दिन है, जब धनतेरस होता है। प्राचीन काल में देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र में समुद्र मंथन किया था।

समुद्र मंथन में से 14 रत्न निकले थे, उसमें से एक था भगवान धनवंतरी समुंद्र मंथन से भगवान धन्वंतरी एक अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। उसी दिन को धनतेरस नाम से मनाया जाता है। कई लोग इसे धनत्रयोदशी भी बोलते हैं। और कोई कोई उसे धनतेरस भी बोलता है। इस दिन लोग अपने घर में जो भी संपत्ति या गहने हैं। उसे भगवान धनवंतरी की मूर्ति के सामने रखकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। और भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना करते हैं, कि उनके घर में सुख शांति और संपत्ति का सदैव सहवास रहे।

नरक चौदस :

दिवाली के दूसरे दिन नरक चौदस के तौर पर मनाया जाता है। प्राचीन काल में एक समय भूमि देवी के पुत्र नरकासुर का आतंक था। उसको यह वरदान प्राप्त था कि, उसकी मृत्यु सिर्फ उसके माता के हाथों से ही होगी।

जिसकी वजह से वह प्रजाजनों को नुकसान पहुँचाता था। और बहुत विनाश करता था। और अपने आप को शक्तिशाली समझने लगा। क्योंकि उसका पता वध कोई नहीं कर पायेगा। उसके वरदान के अनुसार उसका मोत सिर्फ उसके माता के हाथों से, यानी कि भूमि देवी के हाथों से हो सकती है।

फिर अगले जन्म में भूमि देवी ने सत्यभामा के रूप में जन्म लिया। और उनका विवाह भगवान श्री कृष्णा जी से हुआ। उसके पश्चात उन्होंने नरकासुर का वध किया। तब से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में माना जाता है। यह दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। असुरों पर देवताओं की जीत हुई थी।

लक्ष्मी पूजन :

दीपावली के तीसरे दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तभी लक्ष्मी माता प्रकट हुई थी। उस दिन से इस दिन को लक्ष्मी पूजन के रूप से जाना जाता है। इस दिन लोग लक्ष्मी माता की संपति सुख शांति के लिए पूजा अर्चना करते हैं।

वैसे तो प्राचीन कथाओं के अनुसार दिवाली के दिन भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापस आए थे। परंतु हम लोग मां लक्ष्मी और गणपति जी की पूजा करते हैं। क्योंकि यह माना जाता है कि इन दिनों में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। इसीलिए भगवान राम की इस दिन पूजा नहीं की जाती।

इसके लिए लोग माता लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। और उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। लक्ष्मी पूजन के दिन लोग मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं।

गोवर्धन पूजा दीपावली का त्यौहार :

जब भगवान राम लंका पर आक्रमण करने के लिए पुल का निर्माण कर रहे थे। तभी सभी वानर सेना की सहायता से उन्होंने पत्थरों से उनकी रचना कर दी थी।

हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को उठा के ले जा रहे थे परंतु तब तक पुल पूरी बन चुकी थी। तब गोवर्धन पर्वत ने अपना दुख श्री राम को प्रकट किया कि उनका पुल के निर्माण हेतु कुछ भी उपयोग नहीं हो पाया। तभी भगवान श्रीराम ने उनको वचन दिया कि वो उनका का उपयोग जरूर करेंगे। विष्णु अवतार में भगवान ने गोवर्धन पर्वत का इस्तेमाल किया जभी इंद्रदेव का प्रकोप ब्रिज वासियों पर हो रहा था। तभी उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर सारे ब्रिज वासियों की सहायता की थी। और इंद्रदेव का भी घमंड तोड़ा था।

उसी दिन से इस दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है। और गोवर्धन की पूजा की जाती है।

भाई दूज :

दिवाली का आखरी दिन यानी कि भाई दूज भाई बहन का त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की आरती उतारते हैं। उनकी रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। प्राचीन कथा के अनुसार एक दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने उनके घर गए। तभी उनकी बहन का आदर सत्कार देखे कर वह बहुत प्रसन्न हुई। और उनको यह वरदान दिया कि जो भी भाई इस दिन अपने बहन के घर जाएगा।

उसको कालचक्र मुक्ति प्राप्त होगी। और एवं मोक्ष मिलेगा। तब से यह दिन भाई दूज के नाम से जाना जाता है। और बहने अपने भाइयों सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती है।

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