Home Festivals दीपावली में धनतेरस पूजा कैसे करते हैं ? धनतेरस की पूजा क्यों ?

दीपावली में धनतेरस पूजा कैसे करते हैं ? धनतेरस की पूजा क्यों ?

0
दीपावली में धनतेरस पूजा कैसे करते हैं ? धनतेरस की पूजा क्यों ?
दीपावली में धनतेरस पूजा कैसे करते हैं ? धनतेरस की पूजा क्यों ?

नमस्ते दोस्तों, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएँगे कि धनतेरस पूजा कैसे करते हैं ? और क्यों की जाती है धनतेरस पूजा ? उसके पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं। कार्तिक मास कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस माना जाता है। भारत वंश में हिंदू धर्म में धर्मो और पुराणों का बहुत ज्यादा पालन किया जाता है।

दीपावली एक ऐसा उत्सव है जब लोग बहुत उत्सुक होकर इस त्योहार को मनाते हैं। यह त्यौहार ख़ुशियाँली और रोनक लेकर आता है। इस त्यौहार पर लोग अपने रिश्तेदारों से सगे-संबंधियों से मिलने जाते हैं। उसी के साथ त्यौहार आने से पहले लोग घर की साफ सफाई में लग जाते हैं। और घर को कलर घर के बाहर रंगोली करते हैं, सजावट करते हैं । बाजार में जाकर कई सारे कपड़े खरीदते हैं।

कुछ नई चीजें लेते हैं ऐसे माना जाता है कि दिवाली के नई चीजें लेना शुभ होता है। उसी प्रकार धार्मिक मान्यता के अनुसार भारत में स्वास्थ्य को पहला स्थान दिया गया है स्वास्थ्य संपत्ति से भी ऊपर है। स्वास्थ्य है तो सुख-शांति और समृद्धि आती है।

प्राचीन धार्मिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन हुआ था। तभी भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे। अपने हाथ में अमृत कलश लेकर माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार है। और भारत वंश को आयुर्वेदिक भंडार का दान भगवान धन्वंतरि से ही प्राप्त हुआ है।

सदियों से जो भारत में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का महत्व है। वह भगवान धन्वंतरि ने ही वरदान के रूप में मानव जाति को दिया है। इसीलिए दीपावली के अवसर पर भगवान धन्वंतरि की और यमराज जी की भी पूजा की जाती है।

कई लोग यह मान्यता रखते हैं, कि धनतेरस के दिन कुछ सोना या चांदी या किसी भी धातु का चीज लेने से शुभ होता है। और स्वास्थ्य समृद्धि और संपत्ति बनी रहती है। इसीलिए लोग धनतेरस के दिन बाजार से नई चीजें खरीदते हैं। और सोना चांदी के दागिने भी लेते हैं। यह जरूरी नहीं है कि आपको सोना चांदी ही लेना है। क्योंकि यह आपके आर्थिक स्थिति पर है कि आपको क्या लेना है। आप किसी प्रकार की धातु की वस्तु ले सकते हैं। या कोई भी नया बर्तन कोई भी नहीं चीज खरीद सकते हैं।.ऐसा करने से शुभ होता है यह माना जाता है।

धनतेरस की धार्मिक मान्यता क्या है ? और उसके पीछे की कहानी क्या है ?

भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब देवता और असुरों के बीच में समुद्र मंथन हुआ तभी भगवान धन्वंतरि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए।

इसीलिए माना जाता है कि किसी भी वर्धनीय धातु के वस्तु धनतेरस के दिन खरीदने से शुभ होता है। भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के साथ-साथ मां लक्ष्मी भी प्रकट हुई थी। इसके लिए महालक्ष्मी की भी पूजा अर्चना धनतेरस के दिन की जाती है। उसी के साथ साथ भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है।

धनतेरस के दिन क्यों यमराज को दिया लगाया जाता है ?  इसके पीछे की प्राचीन कहानी

जैसे समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उसी प्रकार यमराज को दीया जलाने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में एक राजा थे उनके यहां पर वैभव संपत्ति की कुछ भी कमी नहीं थी। उनको एक पुत्र था। राजा ने राजकुमार की कुंडली बनाई। ज्योतिष के अनुसार राजकुमार की शादी के चौथे दिन राजकुमार की सांप के काटने से मृत्यु हो जाएगी। इस बात से राजा बहुत ही उदास हो गए और चिंतित हो गए।

राजकुमार युवावस्था में आए तभी उनकी शादी एक सुंदर राजकुमारी से कर दी गई। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी। वह एक प्रति पतिव्रता स्त्री थी। जब उन्हें वास्तविकता का ज्ञात हुआ तभी उन्होंने शादी के चौथे दिन पूरे महल में दिए दिये लगाएँ। और पूरे महल को जगमगा दिया हर तरफ रोशनी ही रोशनी दीख रही थी। कहीं भी अंधेरा नहीं था। जहां से अगर सांप आए तो वह ना दीख पाए। और महल के मुख्य दार और राजकुमार के कक्ष में हीरे जवाहरात और सोने के मुद्राएं रख दी।

इतना ही नहीं बल्कि राजकुमारी ने राजकुमार को जगाए रखने के लिए उन्हें कहानियां और गाने सुनाती रहीं। जिससे कि वह रात भर जगे रहे। जैसे संध्या हुई तभी यमराज सांप के रूप में राज महल में प्रवेश करने लगे।

तब चारों और रोशनी देखकर उनकी आंखें बिन बिना गई। और वह कहां से प्रवेश करें यह सोचने लगे। जब वह द्वार की ओर से प्रवेश करने लगे। तो वहा पर रखी गई मुद्राएं और हीरे जवाहरात की वजह से वो अंदर नहीं जा पा रहे थे। और राजकुमारी के गाने सुनकर वह वहीं बैठे रहे। और गानों का आनंद लेते रहे। उनको पता ही नहीं चला कि कभी  सुबह हो गई और सूर्य किरणे महल पर पड़ी।

तभी दूसरा दिन हो चुका था। और मृत्यु काल चल चुका था। यमराज जी लौट चुके थे। कहा जाता है कि यह दिन धनतेरस का था। इसीलिए धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के साथ-साथ यमराज का दीया भी लगाया जाता है |

धनतेरस पूजा विधि करने का तरीका :

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि माता लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा अर्चना की जाती है। उसी के साथ साथ यमराज का भी दिया जलाया जाता है। धनतेरस की पूजा अर्चना करने से पहले यमराज का दिया निकाला जाता है।

इसके लिए आपको पहले एक दिया जलाना है। और उसमें एक कोडी नहीं तो एक रुपया डालकर उस दिए को अपने दरवाजे के सामने लगाकर रखें। और जब यह दीया बुझ जाएगा तब सुबह उसे एक रुपए यहां कौड़ी को जो भी आपने रखा है उस को लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें। या फिर अपने पर्स में रखें।

इससे आपको संपत्ति प्राप्त होगी। उसेके साथ-साथ आप नकारात्मक शक्तियों से दूर रहोगे। और किसी भी तरह की बुरी शक्तियां आप पर प्रभावित नहीं होगी। उसके बाद एक पाठ पर एक नया कपड़ा फेलाकर उस पर एक कलश और नारियल स्थापित किया जाता है। और नारियल पर स्वस्तिक गिराया जाता है। कुमकुम की सहायता से। उसेके बाद घर में जो भी संपत्ति या दागिनी है उसे कलश  के सामने रख दिया जाता है। और इस दिन मान्यता है कि किसी भी धातु या सोने चांदी की चीज खरीदने से शुभ होता है। और संपत्ति में और ज्यादा बरकत होती है। यदि आपने कोई धातु या किसी चीज को खरीदा है।

तो उसे भी तिलक और हल्दी कुमकुम से पूजा-अर्चना करें। और मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर जी की पूजा अर्चना करें। उसके पश्चात कुबेर मंत्र और महालक्ष्मी का जाप करे और धनवंतरी भगवान को नमन करें। यदि संभव है तो दीया रात भर जलने दे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन शाम को मां लक्ष्मी आपके घर में आती है। इसके लिए आपको दिया प्रज्वलित करके रखना चाहिए।

इस प्रकार पौराणिक धार्मिक कहानियां है। और यह प्रथा आज भी लोग चला रहे हैं। और आज भी लोग धनतेरस मनाते हैं। और भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा अर्चना करते हैं. और साथी में यमराज जी को दिया जलाते हैं।

जानिए –

दीपावली में दिया क्यों जलाते हैं ? जानिए क्या है इसके पीछे का राज

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here