नमस्ते दोस्तों, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएँगे कि दीपावली में होने वाली गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है। और गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है? दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसमें 5 दिनों में से प्रत्येक दिन अलग-अलग त्यौहार मनाया जाता है। और देवताओं की पूजा की जाती है। और उन्हें प्रसन्न किया जाता है। उसी में से एक है गोवर्धन पूजा। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे कि गोवर्धन पूजा करने का कारण क्या है? और क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा?
दिवाली में होने वाले गोवर्धन पूजा को लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गोवर्धन पूजा की धार्मिक मान्यताएं हैं और प्राचीन वेद और ग्रंथों में इसका उद्देश्य किया गया है। बताया गया है कि प्रकृति और इंसान का इससे एक विभिन्न दृश्य दिखाई देता है। गोवर्धन यानी की गायों की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गाय को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। और इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। जिस प्रकार मां लक्ष्मी अपने संतानों को सुख, संपत्ति और शांति प्रदान करती है। वैसे ही गाय दूध रूप में इंसानों को स्वास्थ्य प्रदान करती है।
गाय का बछड़ा अनाज उत्पन्न करने में किसानों की सहायता करता है। इसलिए गाय एक वरदान है इंसानों के लिए। गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन की जाती है। गायों को भारत में गौ माता कहते हैं। क्योंकि हिंदू गाय को देवी के रूप में मानते हैं। और यह उतनी ही पवित्र है जितने की नदियों में गंगा माता है। गौमाता संपूर्ण मानव जाति के लिए आदरणीय और पूजनीय है।
गोवर्धन पूजा की प्राचीन कहानी :
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब राम अवतार में भगवान कृष्णा लंका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र पुल का निर्माण कर रहे थे। तभी हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों में उठाकर लेकर आए थे। परंतु तब तक पुल का निर्माण हो चुका था। और गोवर्धन पर्वत अपनी निराशा व्यक्त करते हुए राम जी से कहने लगे कि वह इस पुल के निर्माण हेतु कुछ भी सहायता नहीं कर सके। उनकी निराशा देखकर राम जी ने उनको वचन दिया कि वह उनकी सहायता जरूर लेंगे।
जब वह कृष्णावतार में जन्म लेंगे। भगवान हनुमान को आदेश दिया कि गोवर्धन पर्वत को ब्रिज में वापस रख कर आए। जब भगवान ने कृष्ण अवतार में जन्म लिया। इंद्रदेव को बहुत अभिमान हो गया था। और उन का अभिमान चूर करने के लिए स्वयं लीलाधारी श्री कृष्णा ने एक लीला रची। ब्रिज में ही गोवर्धन पर्वत था सारे बृजवासी हर साल इंद्र देव की पूजा करते थे। और जब वह सब इंद्र देव की पूजा करने में मगन हो गए। तभी भगवान कृष्ण ने माता से प्रश्न किया कि माते हम इंद्र देव की पूजा क्यों कर रहे? तब माता ने कहा कि वह वर्षा करते हैं। तभी तो सबको अनाज प्राप्त होता है। और सर चारों और हरियाली होती है।
तभी कृष्णा ने कहा कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि सारी ब्रिज वासियों की गाय तो वहां ही चरने जाती है ना। यह बात सुनकर इंद्रदेव को बहुत गुस्सा आया और वह बहुत तेजी से बृजवासीयो पर अपना प्रकोप प्रकट करने लगे। श्री कृष्णा ने सारे ब्रिज वासियों को गोवर्धन पर्वत के शरण में जाने की सलाह दी। तभी सभी ब्रिज वासी पर्वत के शरण में अपने बच्चे और गाय पशु-पक्षी को लेकर गए। श्री कृष्णा ने एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और ब्रिजवासियों की रक्षा की उन्होंने 7 दिन तक अपने हाथों की उंगली पर उठा कर रखा था।
जब इंद्र देव का घमंड टूट गया तभी उन्होंने सातवें दिन के बाद गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा। और सारे ब्रिज वासियों की मदद की और संरक्षण किया। तभी से श्रीकृष्ण ने ब्रिज वासियों को कहा कि आज से सब लोग इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करेंगे और इस दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाएगा। उसी दिन से गोवर्धन पूजा की जाती है।
दीपावली में गोवर्धन पूजा कैसे करते हैं ?
गोवर्धन पूजा हर साल दीपावली के दिनों में आती है। तभी गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन कि जाती है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाते हैं। और मूर्ति के सामने हल्दी, कुमकुम,.चावल और दीया लगाकर उसकी पूजा करते हैं।
गोवर्धन पूजा को गायों का पूजा का दिन भी माना जाता है। और इस दिन गायों की भी पूजा की जाती है। गाय,.बेल और यदि पशु-पक्षी साफ-सुथरा करके फूल माला और कुमकुम, चंदन लगाकर उनका पूजन किया जाता है। और उन्हें अनाज और गुड़ खिलाया जाता है। और उनकी आरती की जाती है। उसके पश्चात उनकी प्रदक्षिणा भी की जाती है।
प्राचीन धर्म यानी कि हिंदू धर्म के अनुसार गाय की प्रदक्षिणा करने से गोवर्धन पर्वत की प्रतीक्षा करने का फल प्राप्त होता है। और गौमाता में कई सारे देवों का वास होता है। इसके लिए इसकी प्रदक्षिणा करने से आपको देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा की जाती है।