नमस्ते दोस्तो !आपका फ्री सिम्पलीफाईड इनफार्मेशन वेबसाइड में स्वागत है | आज हम जानेंगे वास्तुशास्त्र क्या होता हैं ? भारत देश में प्राचीन काल से वास्तुशास्त्र इस विज्ञान का महत्व जानाजाता हैं । वास्तुशास्त्र के अनुसार हमारा घर होना चाहिये, ऐसे माना जाता हैं ।
उनमें दिशाओं का भी महत्व बताया गया हैं । सृष्टि में होने वाली घटनाएँ अनायास ही घटित नहीं होती है | बल्कि इनके पीछे सृष्टि के नैसर्गिक नियम कार्य करते है | ऐसे कुछ निश्चित नियम और सिद्धांत हैं, जो कि बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को नियंत्रित करते है |
साथ ही हमारे मानव जीवन के सारे अनुभवों, परिस्थितियों और जीवन में होने वाली घटनाओं को भी नियंत्रित करते है | वास्तु शास्त्र ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण और बेहद प्रभावशाली नियमों पर आधारित विज्ञान है, जिसे तार्किक दृष्टिकोण से समझे जाने की आवश्यकता है ।
वेदों की ऋचाओं में ‘वास्तु’ को गृह निर्माण के योग्य उपयुक्त भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है | चलिए तोह हम जानते हैं, कि वास्तुशास्त्र क्या हैं ।
वास्तुशास्त्र क्या होता हैं ? वास्तुशास्त्र का महत्त्व :
प्राचीन काल के अनुसार घर, मंदिर, बनाने में वास्तुशास्त्र को बोहोत ही महत्व दिया गया हैं । शुरुआत में वास्तु के सिद्धांत मुख्यत: इस बात पर आधारित थे की सूर्य की किरणें पूरे दिन में किस स्थान पर किस तरह का असर करती है |
और इसका अध्ययन करने पर जो नतीजे निकले उन सिद्धांतो ने आगे चलकर वास्तु के अन्य नियमों के विकास की आधारशिला रखी है । वास्तुशास्त्र में चारो दिशाओको मतलब की, पूर्ब, पश्चिम, उत्तर,और दक्षिण दिशा को बोहोत ही महत्व दिया गया हैं ।
एखाद वास्तु या घर के दिशाओको ध्यान में रखके बनाई गई हो तो उस वास्तु मैं सुख, शांति, एवमं आनंद बना रहता हैं, ऐसे माना जाता है । जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है ।
यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है । आग्नेय, नैऋत्य ,वायव्य औऱ ईशान्य ये चार अन्य दिशाये है, जिसके अनुसार वास्तु की रचना की जाती है । वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार मे कोई महत्व नहीं है ।
मनुष्य की इच्छा नुसार उसका घर सकारात्मक ऊर्जा व से भरा रहे उसके घर में सदैव सुख शांती समृद्धी बनी रहे और उसके वास्तू मे या घर मे कोई दोष हो तो वास्तुशास्त्र के अनुसार उसको दूर किया जा सके इसलिये वास्तुशास्त्र का महत्व माना गया है ।
प्राचीन काल मे वास्तुशास्त्र मे अनेक नियम सिद्धांत शुभ अशुभ दिशाये दि गयी है । जिसके अनुसार वस्तू का अनुमान लगाके वास्तु की रचना की जाती है । जिसका परिणाम मनुष्य जीव प्राणी पे होता है । प्राचीन कालमे मुगलकालीन भवन मिस्त्र के पिरॅमिड मे भी वास्तुशास्त्र का सहारा लिया गया है ।
वास्तुशास्त्र का प्रभाव चिरस्ताई है, क्यूकी पृथ्वी का यह झुकाव शाश्वत है ब्रह्मांड मे ग्रह के चुंबकीय सिद्धांत पे यह निर्भर है।वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक मे परमानन्द उत्पन्न करता है | प्राचीन कालमें ऋषीमुनिओने हमारे आसपास के सृष्टी मे जैसे अच्छी शक्ती है वैसे ही अनिष्ट शक्तीया होती हैं, तो उससे बचने के लिए इस विज्ञान का विकास किया गया है, जिसके अनुसार वास्तु की रचनाकी गई हैं ।
वास्तुशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र दोनोही एक समान माने जाते है जिसका मनुष्य के जीवन से सीधा संबंध माना गया है। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्व वेद का अंग माना जाता है । इस सृष्टी के अनुसार मानव शरीर भी अग्नि,जल ,वायु,पृथ्वी और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है ।
वास्तु और उसके आसपास के स्थानों का भी महत्व बहोत एहम माना गया हैं, ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच परस्पर संबंध के कारण यह है कि दोनों का उद्भव वैदिक संहितायों से हुआ है । वास्तुशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र इन दोनों शास्त्रों का मनुष्य मात्र को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर कराना है एवं सुरक्षा देना है ।
वास्तु शास्त्र के अनुरूप निर्माण किये गये भवन एवं उसमे वास्तुसम्मत दिशाओं मे सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के फलस्वरूप उसमे रहने वाले लोगो का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। और तो और परिवार के सभी सदस्य को उनके कार्य मे सफलता प्राप्त होती है |
वास्तु शास्त्र कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिश्रण है। वास्तुशास्त्र के अनुसार एखाद वास्तू बनाने से पहले उसकी जमीन और मिट्टी का अनुसरण किया जाता है जिसे वास्तू बनाने मे तकलीफ ना हो, वास्तुशास्त्र मे आठ दिशा ये जो बताई गई है जिसके अनुसार और उत्तर दिशा मे घर का मुख्य द्वार होना चाहिये उसके बाद जैसे की ईशान्य दिशा बताई गई है जो उत्तर और पूरब के बीच में रहती है | उस दिशा मे ईश्वर का स्थान होना चाहिये | जिसे बोहोत ही पवित्र दिशा मानी गई हैं,मतलब के घर का मंदिर उसी दिशा में होना चाहिये |
घर के ईशान्य दिशा मे दोष होने के कारण घर मे हर वक्त चिंता रहती है रिश्तेदारो से संबंध खराब रहते है इसलिये ईशान्य हमेशा होली रहने चाहिये और ईश्वर काही स्थान होना चाहिये । उसके बाद आता है, पूरब और दक्षिण दिशा जिसके बीच में अग्नेय दिशा बताई गई है जहा पर वास्तु का रसोई घर होना चाहिये क्योंकि रसोई घर को ऊर्जा का स्थान माना गया हैं | रसोई घर मे आग और बिजली के उपकरण दक्षिण पूर्व दिशा में रखना चाहिए क्योंकि सारे ऊर्जा का स्त्रोत अग्नि दिशा को माना गया हैं।
तिसरी आती है नैऋत्य दिशा जो दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच मे आती है जो निशब्द मानी गई है जहा पर घर का शौचालय होना चाहिये उसके बाद आती है चौथी दिशा पश्चिम और उत्तर के बीच में आती है वायव्य दिशा जहा पर डायनिंग हॉल या फिर बैठने का स्थान होना चाहिये ।
वस्तु के अनुसार घर मे सूरज के रोशनी के लिये हवादार सही होना चाइये ।नैऋत्य दिशा में दोष होने के कारण मानसिक अशांति, धन हानि,तथा दुर्घटना, रोग आदि होते हैं,इस दिशामे दोष पाने से आपके आचरण और व्यवहार को प्रभावित करते हैं । वास्तु शास्त्र अनुसार सीढ़ियां कैसी होनी चाहिए ?
इस प्रकार से दिशाओ को ध्यान मे रखते हुए वास्तु की रचना करने से मनुष्यजीव सुख शांती और समृद्धी उनके जीवन मे ला सकते है । इस प्रकार से आज हमने जाना के वास्तुशास्त्र क्या होता हैं ?
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